थक गया हूँ तेरी नौकरी से जिंदगी,
मुनासिब होगा अगर, मेरा हिसाब कर दे ।
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कभी दिमाग, कभी दिल, कभी नजर मे रहो,
ये सब तुम्हारे ही घर हैं, किसी भी घर मे रहो।
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क्या करेगा वो समझकर की सियासत क्या है,
जिसने ये जान लिया है, की मोहब्बत क्या है।
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हर नज़र को तू नजर आये, ऐसा इत्तेफाक कर दे।
सबके अंदर मैं तुझको देखूँ, मेरी निगाह पाक कर दे ।
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उसकी याद आई है, साँसों जरा आहिस्ता चलो,
धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है।
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राह के पत्थर से बढ़के, कुछ नहीं है मंजिले
रास्ते आवाज देते हैं, सफर जारी रखो।
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