कुछ इस कदर बदरंग सी ये ज़िन्दगी लगती है.
शायद इसमें तेरे नूर की कमी सी लगती है.
तनहा और वीरान ये सारा जहाँ लगता है.
बिन तेरे सुनी सुनी ये ज़मी लगती है.
कुछ धुंधला सा नज़र आता है ये सब कुछ मुझे.
शायद मेरी ही आँखों में कुछ नमी सी लगती है.
वो है जो हमसे नजरें फेर के बैठे है,
ना जाने क्यों वो ऐसे इतने देर से बैठे है,
काश देख पते मेरी बेताबी को,
की हम उनके दीदार को कितने शामों सेहर से बैठे है।