अपनों के बीच बेगाने हो गए हैं
प्यार के लम्हे अनजाने हो गए हैं
जहाँ पर फूल खिलते थे कभी
आज वहां पर वीरान हो गए हैं.
कभी कभी किसी अपने की इतनी याद आती हैं,
दोस्तों मोहब्बत और प्यार की रिस्तो से हम ऐसे बन्दे है ,की इन रिस्तो के बिना हम रह हि नहीं सकते ,इन्हें रिस्तो के नाते हम एक दुसरे से बन्दे रहते है ,लेकिन जब हमें किसी से प्यार हो जाता है ,तो ये रिश्ता ना जाने किस तरह के प्यार में बाँध देते है ना ,तो एक दुसरे के बिना रह नहीं सकते है ,जब कोई कुछ पल ले लिए अलग हो जाते तो एक दुसरे के यादों में रोते है ,ये मोहब्बत की तड़प अजीब होती है ,एक पल की जुदाई सह नहीं जाता ,उसकी छोटी नटखट बाते याद आ कर ,हमें सताती रहती है ,और हमें रुलाती रहती है ,जब दो दोनों साथ में रहते है ,ना तो छोटी छोटी में झगडा करते रहेगे लेकिन मोहब्बत की तड़प अजीब होते है .
कि रोने के लिए रात भी कम पड़ जाती हैं.
बालाएं आकर भी मेरी चौखट से लौट जाती हैं,
मेरी माँ की दुआएं भी कितना असर रखती हैं।
दोस्तों पत्थर के मूरत को तो सभी पूजते है ,मगर कोई अपने माँ बाप को पूजे तो सारा जीवन धन्य हो जाये ,दोस्तों माँ ,सिर्फ माँ ,शब्द सुनते हि ,दिल में एक ऐसा प्यार मचलता है ,जो जिसके सामने दुनिया का कोई मोहब्बत फीका पड़ जाता है ,इस ऐसा कोई नहीं होगा जो अपने माँ से प्यार नहीं ल,करता होगा ,९ महीने जो अपने पेड़ में रख कर अपने खून से सीचती है ,एक निवाला कम खा कर ,अपने बेटे का पेट भारती है ,दुनिया का सब दर्द झेल कर भी ,अपने बेटे को खुश रखती है ,माँ से बड इस दुनिया में कोई नहीं ,खुदा इस ईश्वर नहीं ,पत्तर के मूरत को पूजने से अच्छा है अपने माँ बाप को की सेवा करे ,ममा माँ होती उसका जगह कोई नही ले सकता ,अगर अपने बच्चे का एक आशुं गीरे तो सो आशु माँ के गिरते है ,माँ के उपर एक छोटी सी स्टोरी ,
एक छोटे से कसबे में समीर नाम का एक लड़का रहता था। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति बड़ी दयनीय थी, समीर की माँ कुछ पढ़ी-लिखी ज़रुर थीं लेकिन उतनी पढाई से नौकरी कहाँ मिलने वाली थी सो घर-घर बर्तन मांज कर और सिलाई-बुनाई का काम करके किसी तरह अपने बच्चे को पढ़ा-लिखा रही थीं।
समीर स्वाभाव से थोड़ा शर्मीला था और अक्सर चुप-चाप बैठा रहता था। एक दिन जब वो स्कूल से लौटा तो उसके हाथ में एक लिफाफा था।
उसने माँ को लिफाफा पकड़ाते हुए कहा, “माँ, मास्टर साहब ने तुम्हारे लिए ये चिट्ठी भेजी है, जरा देखो तो इसमें क्या लिखा है?”
माँ ने मन ही मन चिट्ठी पढ़ी और मुस्कुरा कर बोलीं, “बेटा, इसमें लिखा है कि आपका बेटा काफी होशियार है, इस स्कूल के बाकी बच्चों की तुलना में इसका दिमाग बहुत तेज है और हमारे पास इसे पढ़ाने लायक शिक्षक नहीं हैं, इसलिए कल से आप इसे किसी और स्कूल में भेजें। ”
यह बात सुन कर समीर को स्कूल न जा सकने का दुःख तो हुआ पर साथ ही उसका मन आत्मविश्वास से भर गया कि वो कुछ ख़ास है और उसकी बुद्धि तीव्र है।
माँ, ने उसका दाखिला एक अन्य स्कूल में करा दिया।
समय बीतने लगा, समीर ने खूब मेहनत से पढाई की, आगे चल कर उसने सिविल सर्विसेज परीक्षा भी पास की और आईएस बन गया।
समीर की माँ अब बूढी हो चुकीं थीं, और कई दिनों से बीमार भी चल रही थीं, और एक दिन अचानक उनकी मृत्यु हो गयी।
समीर के लिए ये बहुत बड़ा आघात था, वह बिलख-बिलख कर रो पड़ा उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब अपनी माँ के बिना वो कैसे जियेगा…रोते-रोते ही उसने माँ की पुरानी अलमारी खोली और हाथ में उनकी माला, चश्मा, और अन्य वस्तुएं लेकर चूमने लगा।
उस अलमारी में समीर के पुराने खिलौने, और बचपन के कपड़े तक संभाल कर रखे हुए थे समीर एक-एक कर सारी चीजें निकालने लगा और तभी उसकी नज़र एक पुरानी चिट्ठी पर पड़ी, दरअसल, ये वही चिट्ठी थी जो मास्टर साहब ने उसे 18 साल पहले दी थी।
नम आँखों से समीर उसे पढने लगा-
“आदरणीय अभिभावक,
आपको बताते हुए हमें अफ़सोस हो रहा है कि आपका बेटा समीर पढ़ाई में बेहद कमज़ोर है और खेल-कूद में भी भाग नहीं लेता है। जान पड़ता है कि उम्र के हिसाब से समीर की बुद्धि विकसित नहीं हो पायी है, अतः हम इसे अपने विद्यालय में पढ़ाने में असमर्थ हैं।
आपसे निवेदन है कि समीर का दाखिला किसी मंद-बुद्धि विद्यालय में कराएं अथवा खुद घर पर रख कर इसे पढाएं।
सादर,
प्रिन्सिपल”
समीर जानता था कि भले अब उसकी माँ इस दुनिया में नहीं रहीं पर वो जहाँ भी रहें उनकी ममता उनका आशीर्वाद सदा उस पर बना रहेगा!भगवान् सभी जगह नहीं हो सकते इसलिए उसने माएं बनायीं।
माँ से बढ़कर त्याग और तपस्या की मूरत भला और कौन हो सकता है ? हम पढ़-लिख लें, बड़े हो कर कुछ बन जाएं इसके लिए वो चुपचाप ना जाने कितनी कुर्बानियां देती है, अपनी ज़रूरतें मार कर हमारे शौक पूरा करती है। यहाँ तक कि संतान बुरा व्यवहार करे तो भी माँ उसका भला ही सोचती है! सचमुच, माँ जैसा कोई नहीं हो सकता!
हर सोच में बस एक ख्याल, तेरा आता है!
लब जरा से हिलते नहीं की, नाम तेरा आता है!
मुझे बस ये एक रात नवाज दे,
Dev Aggarwal
फिर उसके बाद सहर ना हो,
मेरी तरस्ती रूह को लगा गले,
की फिर बिछड़ने का डर ना हो ।
किस्मत यह मेरा इम्तेहान ले रही है,
तड़पकर यह मुझे दर्द दे रही है,
दिल से कभी भी मैंने उसे दूर नहीं किया,
फिर क्यों बेवफाई का वह इलज़ाम दे रही है.
उम्र छोटी है तो क्या, ज़िंदगी का हरेक मंज़र देखा है
फरेबी मुस्कुराहटें देखी हैं, बगल में खंजर देखा है.
जिन जख्मो से खून नहीं निकलता समझ लेना,
वो ज़ख्म किसी अपने ने ही दिया है।
कद बढ़ा नहीं करते, ऐड़ियां उठाने से
ऊंचाईया तो मिलती हैं, सर झुकाने से।
सारी उम्र व्यर्थ गवाँई,
Ravindar Sudan
बुढ़ापे में महसूस हुई तन्हाई।
जिससे दिल लगा था, छेड़ दिया जाकर
चप्पल खाई तो अकल आई।
सपने और लक्ष्य में एक ही अंतर है,
सपने के लिए बिना मेहनत की नींद चाहिए,
और लक्ष्य के लिए बिना नींद की मेहनत.
आपके जीवन की हर ख्वाहिश हो पूरी,
आपके दिल की कोई आरजू रहे ना अधूरी,
करते है हृदय से माँ दुर्गा से विनती,
आपकी हर मनोकामना हो पूरी .
हे माँ..! तुमसे विश्वास ना उठने देना,
तेरी दुनिया में भय से जब सिमट जाऊं,
चारों ओर अँधेरा ही अँधेरा घना पाऊं,
बन के रोशनी तुम राह दिखा देना ।